PRS oberoi : नहीं रहे पीआरएस ओबेरॉय, 94 साल की उम्र में निधन, इन्हे कहा जाता है होटलस का पितामह

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PRS oberoi

PRS oberoi ‘बिकी’ के नाम से मशहूर PRS oberoi का जन्म 1929 में दिल्ली में हुआ था। ‘The oberoi group के संस्थापक MS Oberoi के बेटे PRS oberoi लंबे समय तक EIH लिमिटेड के CEO रहे और उसके विकास की राह पर आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

oberoi group के चेयरमैन पृथ्वीराज सिंह ओबेरॉय (PRS Oberoi) का मंगलवार सुबह को निधन हो गया। वे 94 साल के थे। ने PRS Oberoi भारत में होटल कारोबार में नई दिशा देने में बहुत बडी भूमिका निभाई थी। उन्हें इस कारोबार का चेहरा बदलने के लिए जाना जाता था। PRS Oberoi ने 2022 में EIH के कार्यकारी अध्यक्ष और EIH एसोसिएटेड होटल्स लिमिटेड का चेयरमैन का पद छोड़ दिया था। उन्हें 2008 में पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

PRS oberoi
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Oberoi कैसे बने मालिक?


PRS oberoi आज भारत के हर शहरों में आपको हजारों होटल्स मिल जाया करेंगे। लेकिन आजादी के पहले भारत में हर बड़े होटलों पर अंग्रेजों का कब्जा हुआ करता था और यहीं पर नाम आता है मोहन सिंह ओबरॉय का, जिन्हें भारत का फादर ऑफ होटल इंडस्ट्री भी कहा जाता है। जिन्होंने सिर्फ ₹25 से अपने सफर की शुरुआत किया और आज उनके। ओबरॉय होटल दुनिया के टॉप टेन होटल्स में से एक हैं। फिर चाहे वह डेली का फाइव स्टार होटल हो,

जयपुर का ओबरॉय राज विलाज हो या फिर सऊदी अरेबिया के मदीना में ओबरॉय होटल हो। यह होटल दुनिया के सबसे बेहतरीन और खूबसूरत होटल्स में से एक होते हैं। शिमला के एक होटल में कैशियर की नौकरी से शुरुआत करने वाले मोहन सिंह ओबरॉय के पास आज 32 से ज्यादा लग्जरी होटल्स हैं। सात देशों के अंदर उनके पास दो दो रीवर क्रूज हैं। इसके साथ ही उनके पास ट्राइडेंट ग्रुप है, जिसमें करीब 10 से ज्यादा होटल्स हुआ करते हैं। इनका ओबरॉय। सेंटर फॉर लर्निंग एंड डेवलपमेंट एशिया के सबसे बड़े हॉस्पिटैलिटी एजुकेशन में से एक माना जाता है।

इस ब्लाँग में आज हम बात कर रहे होंगे कि किस तरीके से मोहन सिंह ओबरॉय ने ओबरॉय ग्रुप की शुरुआत की और कैसे इतने बड़े तक पहुंचाया। इसके साथ ही हम उनके कुछ सीक्रेट जान रहे होंगे कि कैसे हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को रन किया जाता है और होटल्स कैसे सक्सेसफुल होते हैं।

PRS oberoi के पिता मोहन सिंह ओबरॉय की कहानी

इस कहानी की शुरुआत होती है साल 1898 से। जब मोहन सिंह ओबरॉय का जन्म रावलपिंडी में हुआ था। एक बेहद गरीब परिवार से बिलॉन्ग करने वाले मोहन सिंह ओबरॉय ने बहुत ही मुश्किल से अपनी पढ़ाई रावलपिंडी में पूरी किया। इसके बाद उन्होंने हायर स्टडीज के लिए लाहौर जाने का सोचा और किसी तरीके से अपना ग्रैजुएशन पूरा किया। इस बीच उन्होंने कई बार जॉब करने का सोचा, लेकिन उनको कहीं भी अच्छी जॉब नहीं मिली। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उनको पहली जॉब मिलती है जूते की कंपनी में। लेकिन उनका समय इतना खराब था कि वो जूते की कंपनी भी बंद हो जाती है

और उनकी जॉब हाथ से चली जाती है। उसी बीच एक बार मोहन सिंह ने अखबार में पढ़ा कि शिमला में एक सरकारी नौकरी का पद खाली है जिसके लिए वह अपनी मां से ₹25 लेकर वह शिमला चले जाते हैं। शिमला जाने पर वह कई बार कोशिश करते हैं, लेकिन वह जॉब उनको नहीं मिलती है और कुछ दिन शिमला में समय बिताने के बाद उनकी नजर सिसिल होटल पर पड़ती है, जो कि एक बेहद आलीशान होटल हुआ करता था। वह सीधा होटल में घुसते हैं और जाते हैं।

पहली बार जब मिली नौकरी

मैनेजर से बात करते हैं कि उन्हें किसी तरह से कोई भी जॉब मिल जाए और उनको अपनी सबसे पहली जॉब वहीं पर मिलती है। ₹50 तनखा पर उनको एक कैशियर की जॉब मिल जाती है। मोहन सिंह ओबरॉय एक बेहद ही ईमानदार इंसान थे और उन्होंने बेहद ईमानदारी से अपने काम को करना शुरू किया। जिसके बाद होटल मैनेजर ने खुश होकर उनको कई सारे कामों में भी लगाया और इसी में सात साल बीत जाते हैं और साल 1929 में होटल के मैनेजर क्लार्क ने अपना एक छोटा सा होटल खरीदा।

शिमला में ही उस होटल का नाम उन्होंने काटन होटल रखा जिसका मैनेजर उन्होंने मोहन सिंह ओबरॉय को बनाया। इसके एक साल बाद क्लार्क छुट्टियां मनाने वापस अपने परिवार के साथ इंग्लैंड जाते हैं और अब होटल की पूरी जिम्मेदारी मोहन सिंह ओबरॉय के ऊपर आ जाती है। मोहन सिंह ओबरॉय अब तक होटल के बिजनेस को बहुत अच्छे से समझ चुके थे और उन्हें पता चल चुका था कैसे होटल की ऑक्युपेंसी को डबल करना है। उन्होंने काटन होटल की ऑक्युपेंसी का डबल कर दिया

और रेवेन्यू को भी डबल कर दिया। इसके बाद जब क्लार्क वापस लौटकर आते हैं, तो उन्होंने जब होटल का पूरा स्ट्रक्चर और रेवेन्यू देखा, तो वह काफी ज्यादा प्रभावित हुए। ओबरॉय से इसके कुछ समय बाद क्लार्क ने डिसाइड किया कि वह पूरी तरीके से इंग्लैंड जाकर रहना चाहते थे, जिसके बाद उन्होंने मोहन सिंह ओबरॉय को एक प्रपोजल दिया। क्या ₹25,000 में यह होटल खरीद लें? मोहन सिंह ओबरॉय को यह प्रपोजल बहुत पसंद आता है क्योंकि जिस होटल में उन्होंने काम किया है

अब उसी होटल को खरीदने वाले थे। उन्होंने अपनी बीवी के कुछ गहने बेचे। उन्होंने जाकर अपनी जितनी भी प्रॉपर्टी थी, वह सब बेचा, लेकिन उन्होंने ₹25,000 नहीं जोड़ पाए और इसके बाद वह क्लार्क के पास आते और कहते हैं कि मैं इतने पैसे नहीं जोड़ पाया। आप होटल किसी और को भेज दीजिए। लेकिन क्लार्क उनके काम से इतने प्रभावित थे।

उन्होंने कहा कि तुम धीरे धीरे करके पैसा मेरे पास इंग्लैंड भेज देना और साल 1934 तक जब उन्होंने फाइनल पूरा पैसा दे दिया। इसके बाद होटल काटन के मालिक मोहन सिंह ओबरॉय बन जाते हैं। इसके बाद ओबरॉय ने होटल काटन का नाम बदला और उन्होंने क्लार्क के सम्मान में होटल का नाम रखा द क्लार्क होटल। कुछ ही समय के बाद होटल क्लार्क शिमला के सबसे बड़े होटल्स में से एक शुमार हो गया और यहां पर मोहन सिंह ओबरॉय ने। अब जहां पर उन्होंने सबसे पहले जॉब किया था सेसिल होटल उस होटल को भी उन्होंने खरीद लिया और अब वह दो होटलों के मालिक हो चुके थे।

मुस्किल वक्त में भी हार नही मानी

इसे कुछ समय बाद कोलकाता में एक बड़ी महामारी फैलती है कॉलरा की जिस वजह से होटल इंडस्ट्री बहुत बुरी तरीके से प्रभावित हुई और कई सारे होटल्स बंद होने के कगार पर आ गए। उसी समय कोलकाता में काफी बड़ा होटल बिकने की कगार पर था। द ग्रैण्ड होटल जिसमें करीब 500 कमरे हुआ करते थे। मोहन सिंह ओबरॉय ने इसे लीज पर करीब 20 सालों के लिए खरीदा और इसके बाद साल 1946 में उन्होंने ओबरॉय पाम बीच होटल भी शुरुवात किया और साल 1947 में भारत जब आजाद होता है उसके बाद भारत में होटल्स काफी कम हुआ करते थे। भारत में कोई भी फाइव स्टार होटल नहीं हुआ करता था।

यहां पर मोहन सिंह ओबरॉय भारत के बिजनेस को समझ रहे थे। वह यह देख रहे थे कि बाहर से टूरिस्ट भारत में आते हैं जिनको अच्छी सुविधा नहीं मिलती है और यहीं से उन्होंने अपनी पहली ट्रैवल कंपनी भी शुरू किया जिसका नाम था मर्करी ट्रैवल्स, जिसमें वह बाहर से आने वाले टूरिस्ट को फ्लाइट से लेकर एकोमोडेशन तक सारी हेल्प किया कर थे।

मोहन सिंह ओबरॉय अपने कस्टमर्स को एक अलग एक्सपीरियंस देना चाहते थे, जिस वजह से वह अलग अलग जगह पर वह नए नए होटल्स होते जा रहे थे। यहां पर उन्होंने रियलाइज किया कि भारत के पैलेसेज में भी कई सारे होटल्स खोले जा सकते हैं और यहां पर उन्होंने महाराजा हरि सिंह के होटल को खरीदा। यहां पर उन्होंने 20 साल।

लीज पर करीब हर महीने ₹5,000 की कीमत पर उन्होंने महाराजा हरि सिंह का होटल लीज पर ले लिया और उस पैलेस को उन्होंने पूरी तरीके से होटल में कनवर्ट किया, जोकि भारत का सबसे पहला पैलेस होटल था। इसके बाद मोहन सिंह ने रियलाइज किया कि भारत में जितनी भी फ्लाइट्स उड़ा करती हैं, उनमें अच्छा फूड नहीं मिला करता है।

अपनी केटरिंग सर्विस भारत के फ्लाइट्स में शुरू की

जिसके बाद साल 1959 से उन्होंने अपनी केटरिंग सर्विस भारत के फ्लाइट्स में शुरू किया। जहां पर वह इंटरनेशनल लेवल का खाना अपने कस्टमर्स को प्रोवाइड कर रहे थे। जिस वजह से भारत की फ्लाइट्स में एक नए तरीके का लोगों अनुभव मिलने लगा और जितने भी ट्रैवलर्स फ्लाइट्स से भारत आया करते थे उनको अच्छा फूड उन्होंने देना शुरू कर दिया। यह भारत का 1960 का दशक था जब भारत में कोई भी फाइव स्टार होटल नहीं हुआ करते थे

और यहीं पर मोहन सिंह ओबरॉय ने भारत का सबसे पहला फाइव स्टार होटल डेल्ही में खोला, जिसका नाम उन्होंने ओबरॉय होटल रखा। इस फाइव स्टार होटल में करीब पाँच रेस्टोरेंट, दो बार हेल्थ क्लब, स्विमिंग पूल और फुल एसी हुआ करता था। यह भारत का सबसे पहला फाइव स्टार होटल बना और इसके बाद मोहन सिंह ने भारत के बाहर भी कई सारे होटल्स खोलने शुरू किए। उन्होंने देखा कि पैलेस को काफी ईजिली कनवर्ट किया जा सकता है।

होटल्स में जिसकी डिमांड भी मार्केट में काफी ज्यादा है। जिस वजह से उन्होंने कलकत्ता में द ओबरॉय ग्रैंड खोला। इसके साथ ही उन्होंने कायरो में द हिस्टोरिक मीना हाउस खोला। इसके साथ उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में द विंडसर नाम का एक बड़ा होटल बनाया। 1980 के दशक में मोहन सिंह ओबरॉय के बेटे बिक्की ओबरॉय इस बिजनेस को संभालते हैं और उन्होंने भारत के बिजनेस में कई सारी कमियां देखीं। उन्होंने रियलाइज किया कि भारत के जो पड़ोसी देश हैं, उन्होंने टूरिज्म इंडस्ट्री को बहुत ही बखूबी समझा है

जब विदेशीयो को भारत में आकर्षित किया

और उन्होंने बहुत सारे एयरपोर्ट्स और अपने कंट्री में बहुत सारे ट्यूरिज्म स्पॉट्स बनाए हैं। जिस वजह से टूरिस्ट भारत तो आते हैं लेकिन वह भारत से भारत के नियरबाय कंट्री में ज्यादा जाने लगे हैं जैसे कि इंडोनेशिया, इजिप्ट, श्रीलंका, नेपाल। इन कंट्रीज में अब जाना शुरू हो चुके हैं तो बिक्की ओबरॉय ने इन कंट्रीज में अपना नेटवर्क बनाना शुरू किया और उन्होंने इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, इजिप्ट, श्रीलंका, इराक और सिंगापुर जैसे कंट्री में अपने ओबरॉय होटल्स बनाने शुरू किए।

ताकि अगर टूरिस्ट भारत में नहीं आता है, किसी और कंट्री में भी जाता है तो उनको वहां पर भी ओबरॉय होटल का वही लग्जरी ट्रीटमेंट मिला जा सके। यहां पर सबसे बड़ा क्वेश्चन उठता है कि इतने कम सालों में इतने सारे होटल्स कैसे ओबरॉय ग्रुप ने खोले। इनके कुछ बिजनेस के सीक्रेट्स हैं। मोहन सिंह ओबरॉय हमेशा बिलीफ किया करते थे

कि आपको हमेशा बिजनेस पर कॉस्ट कट नहीं करना है। आपको वेस्टेज कट कर रहा है क्योंकि अगर आप कॉस्ट कट करते हैं तो या तो आपका जो भी गेस्ट आ रहा है वह से सफर करेगा। या तो आपके एंप्लॉई सफर करेंगे, आपको वेस्टेज हटाना है। और यही करके उन्होंने बहुत सारे वेस्टेज अपने होटल इंडस्ट्री से खत्म कर दिए, जिस वजह से वह कम पैसों में एक अच्छा सॉल्यूशन अपने कस्टमर्स को देना शुरू कर चुके थे और इसके बाद उनकी स्ट्रैटिजी टू आती है

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